ITBP के बाद BSF के इंस्पेक्टरों ने जीती अदालती लड़ाई, मिला सहायक कमांडेंट वाला 5400 का ‘ग्रेड पे’

गत वर्ष ITBP के इंस्पेक्टर सुशील कुमार ने दिल्ली कोर्ट से यह लड़ाई जीती थी, अब BSF के लगभग सवा सौ इंस्पेक्टरों ने अदालत से अपने हक में आदेश जारी कराया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने गत सप्ताह सीमा सुरक्षा बल के इंस्पेक्टरों को 5400 रुपये वाला ‘ग्रेड पे’ देने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने संबंधित विभाग को दो माह के अंदर यह आर्डर पारित करने के लिए कहा है।

केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को लेकर सरकार दोहरी नीति अपना रही है। पहले खुद कहती है कि ये बल तो ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ हैं। जब दिल्ली हाईकोर्ट इसी आधार पर इन बलों को ओपीएस में शामिल करने का फैसला देता है तो केंद्र सरकार उसे नहीं मानती। सरकार, उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चली जाती है। अब इसी तरह के दूसरे केस सामने आ रहे हैं। वित्त मंत्रालय के 2008 में जारी एक कार्यालय ज्ञापन ‘ओएम’ में कहा गया था कि जिन कर्मियों का 4800 रुपये का ‘ग्रेड पे’ है और उन्होंने इसमें चार साल की नौकरी कर ली है तो उनका ग्रेड पे 5400 रुपये हो जाएगा। यह बात केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में स्वत: ही लागू नहीं होती। इसे लागू कराने के लिए अदालतों का सहारा लेना पड़ता है।

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बीएसएफ के इंस्पेक्टर आनंद प्रताप सिंह व अन्य ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष याचिका लगाई थी कि उन्हें 48 सौ रुपये के ‘ग्रेड पे’ में काम करते हुए चार साल से अधिक समय हो गया है, लेकिन सरकार उन्हें 5400 रुपये का वेतनमान नहीं दे रही। यह वेतनमान सहायक कमांडेंट का होता है। इंस्पेक्टर के बाद अगली पदोन्नति बतौर ‘सहायक कमांडेंट’ होती है। पदोन्नति तो तभी मिलती है, जब पद खाली हों। इसमें तो दस पंद्रह साल तक लग जाते हैं। तब तक इंस्पेक्टरों को सहायक कमांडेंट का ग्रेड पे देने का प्रावधान है, ताकि इन्हें आर्थिक नुकसान न हो। बीएसएफ इंस्पेक्टरों के मामले में विभाग ने बाधा खड़ी करने का प्रयास किया, मगर दिल्ली हाईकोर्ट ने कोई बात नहीं सुनी। यह तर्क दिया गया कि इंस्पेक्टरों को ‘मॉडिफाइड एश्योर्ड करियर प्रोग्रेसन’ (एमएसीपी) में यह ग्रेड मिला है। इस मामले को एमएसीपी में फंसाने की कोशिश हुई। बीएसएफ इंस्पेक्टरों की तरफ से इस केस की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता अंकुर छिब्बर ने की। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष गत वर्ष दिए फैसले का हवाला दिया।

दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शैलैंद्र कौर ने कहा, ये एमएसीपी का केस ही नहीं है। इंस्पेक्टरों को चार वर्ष से 48 सौ का ‘ग्रेड पे’ मिल रहा है तो वे 5400 के ग्रेड पे में आने के अधिकारी हैं। गत वर्ष दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस रेखा पल्ली और जस्टिस शैलेंद्र कौर ने 9 सितंबर को यह फैसला सुनाया था। आईटीबीपी के इंस्पेक्टर सुशील कुमार की दलील थी कि केंद्र सरकार ने ग्रुप बी के सभी कर्मियों को यह फायदा दिया है, मगर इसमें केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को छोड़ दिया गया।

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मामले की सुनवाई के बाद सुशील कुमार की जीत हुई। अदालत ने उन्हें 5400 ग्रेड पे देने का फैसला सुनाया। सीआरपीएफ और बीएसएफ में ऐसे सैकड़ों इंस्पेक्टर ‘जीडी’ हैं, जो डेढ़ दशक से अधिक अवधि बीत जाने के बाद भी सहायक कमांडेंट नहीं बन सके हैं। सुशील कुमार के मामले के बाद वे भी अदालत में याचिका लगाने की तैयारी करने लगे। बीएसएफ के इंस्पेक्टर आनंद प्रताप सिंह व अन्य ने याचिका लगा दी। इस मामले में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों का हवाला भी दिया गया। विभाग से आग्रह किया गया कि जब कोर्ट ने सुशील कुमार के केस में यह फैसला दिया है तो उन्हें भी उक्त लाभ दिया जाए।

बीएसएफ इंस्पेक्टरों के केस में हाईकोर्ट ने कहा, अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर ‘स्टे’ नहीं हुआ तो यह आदेश लागू किया जाए। सर्वोच्च अदालत से इस बाबत कोई उल्ट आदेश आता है तो वह याचिकाकर्ताओं के पक्ष में हुए दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश को प्रभावित करेगा।

इस प्रकार, बीएसएफ के इंस्पेक्टरों ने आखिरकार अपना हक पाने की लड़ाई जीत ली है, जो उनके लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक राहत है।

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