बीएसएफ के पूर्व एडीजी एसके सूद ने अपनी पुस्तक ‘बीएसएफ, द आइज एंड ईयर्स ऑफ इंडिया’ में ‘बांग्लादेश की मुक्ति’ की लड़ाई से जुड़े कई अहम तथ्यों से पर्दा हटाया है। उन्होंने किताब के चौथे अध्याय में लिखा है, जुलाई 1971 में बीएसएफ की 103वीं बटालियन, जो कूच बिहार में थी, उसने पाकिस्तानी सेना के कब्जे से 1800 वर्ग मील का इलाका छीन लिया था।
बांग्लादेश की स्थापना में भारतीय सेना के साथ बीएसएफ जवानों के शौर्य को भुलाया नहीं जा सकता। खुद बांग्लादेश की सरकार ने कई अवसरों पर यह बात स्वीकार की है। बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई में बीएसएफ जवानों ने जो वीरता दिखाई, उसके चर्चे आज भी होते हैं। सीमा सुरक्षा बल की 71वीं बटालियन ने महानंदा नदी के बाद पाकिस्तान की सेना पर जबरदस्त हमला किया था। इस लड़ाई में बीएसएफ के सिपाही पदम बहादुर लामा शहीद हुए थे। दो अन्य जवान घायल हुए। यह बटालियन जैसे ही बांग्लादेश के राजशाही शहर में पहुंची, तो वहां लोगों ने ‘लॉन्ग लिव इंडिया बांग्लादेश फ्रेंडशिप’ के नारे लगाए। सेना की मदद से बीएसएफ, पाकिस्तान के कब्जे से ‘नवाबगंज’ का 1800 वर्ग मील का इलाका छीन लाई थी।
पाकिस्तान फ्लैग मीटिंग के लिए राजी हो गया
बीएसएफ के पूर्व एडीजी एसके सूद ने अपनी पुस्तक ‘बीएसएफ, द आइज एंड ईयर्स ऑफ इंडिया’ में ‘बांग्लादेश की मुक्ति’ की लड़ाई से जुड़े कई अहम तथ्यों से पर्दा हटाया है। उन्होंने किताब के चौथे अध्याय में लिखा है, जुलाई 1971 में बीएसएफ की 103वीं बटालियन, जो कूच बिहार में थी, उसने पाकिस्तानी सेना के कब्जे से 1800 वर्ग मील का इलाका छीन लिया था। सीमा सुरक्षा बल की 71वीं बटालियन ने महानंदा नदी के बाद पाकिस्तान की सेना पर जबरदस्त हमला किया था। यह बटालियन जैसे ही बांग्लादेश के राजशाही में पहुंची, तो वहां लोगों ने ‘लॉन्ग लिव इंडिया बांग्लादेश फ्रेंडशिप’ के नारे लगाए। 77वीं बटालियन जो पहाड़ी इलाके में तैनात थी, उस पर पाकिस्तान ने भारी बमबारी की। बीएसएफ ने जब जवाब देना शुरू किया, तो पाकिस्तान फ्लैग मीटिंग के लिए राजी हो गया। 22 अप्रैल 1971 को दोनों पक्ष, फायरिंग रोकने पर राजी हो गए। सीमा सुरक्षा बल ने पूर्वी पाकिस्तान की खानपुर बीओपी पर कब्जा कर लिया था। इसमें बीएसएफ के नायक अमल कुमार मंडल शहीद हो गए थे।
बीएसएफ ने बॉर्डर पर 17 ट्रेनिंग सेंटर शुरू किए थे
बीएसएफ ने बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी को ट्रेनिंग दी थी। मुक्ति वाहिनी के अस्तित्व में आने से पहले ‘मुक्ति योद्धा’ तैयार किए गए। पूर्व एडीजी संजीव कृष्ण सूद के अनुसार, बीएसएफ ने ही मुक्ति वाहिनी को खड़ा किया था। उनकी ट्रेनिंग व संगठन का ढांचा सीमा सुरक्षा बल की अकादमी के तत्कालीन निदेशक ब्रिगेडियर बीएस पांडे ने तैयार किया था। बॉर्डर के विभिन्न हिस्सों पर 17 ट्रेनिंग सेंटर शुरू किए गए थे। इस सेंटरों पर 3000 मुक्ति वाहिनी कैडर को प्रशिक्षण मिला। बीएसएफ ने पाकिस्तान के संचार सिस्टम को भारी नुकसान पहुंचाया। बांग्लादेश का मुख्यालय स्थापित किया गया। बांग्लादेश को हर तरह की आपरेशन मदद दी गई। यहां तक कि उनका वायरलेस सिस्टम, बीएसएफ ने ही खड़ा किया था।
पूर्वी पाकिस्तान में अनेक पुलों को ध्वस्त किया
बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई में बीएसएफ ने पूर्वी पाकिस्तान में अनेक पुलों को ध्वस्त कर पाक सेना को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। पाकिस्तान में बड़े शहरों का लिंक खत्म कर दिया गया। ‘ब्लैक शर्ट्स’ कमांडो ने पाकिस्तान सेना पर बड़ा वार किया था। बीएसएफ ने स्पेशल कमांडो ‘ब्लैक शर्ट्स’ तैयार किए थे। ये वही कमांडो थे, जिन्होंने पाकिस्तानी सेना पर घात लगाकर हमला किया। पाकिस्तान की अधिकांश पोजिशन तबाह कर दी गई। दूसरे चरण में बीएसएफ को सीमा के अलावा सभी बीओपी की सुरक्षा की जिम्मेदारी मिली। सीमा सुरक्षा बल की 23 यूनिटों का कंट्रोल सेना के पास था।
बीएसएफ के बिना नवाबगंज पर कब्जा संभव नहीं
71वीं बटालियन, जिसके पास 10 ‘पोस्ट ग्रुप आर्टिलरी’ थी, उसकी कमांड सहायक कमांडेंट एलएस नेगी ने संभाल रखी थी। नवाबगंज पर कब्जा जमाने में उनका खास योगदान रहा था। मेजर जनरल लछमन सिंह, पीवीएसएम, वीआरसी जीओसी 20 माउंटेन डिवीजन ने ‘डीओ’ लैटर लिखकर बीएसएफ कमांडर ‘आर्टिलरी’ की बहादुरी और मदद का जिक्र किया था। उन्होंने लिखा कि बीएसएफ के बिना नवाबगंज पर कब्जा संभव नहीं था। बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बीएसएफ के डीजी केएफ रुस्तम से कहा था, आपको जो अच्छा लगे, वह करें, लेकिन पकड़े न जाएं। अपनी पूरी ताकत बॉर्डर पर लगा दें।(AMAR UJALA)
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