भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी राजा बाबू सिंह कहते हैं कि तापमान दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है, ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं, नदियां खत्म हो रही हैं, पेड़-पौधे सूख रहे हैं। अगर हम सही समय पर सही कदम नहीं उठाते हैं तो भविष्य में हमें किस भयावह स्थिति का सामना करना पड़ सकता है, इसकी आप कल्पना ही कर सकते हैं।
पूरा उत्तर भारत इन दिनों ‘आग’ की भट्टी बना हुआ है। चाहे पहाड़ हो या मैदान सभी भीषण गर्मी से जूझ रहे हैं। इसकी वजह ग्लोबल वार्मिंग बताई जा रही है। ऐसे में राजस्थान में पड़ रही गर्मी का अंदाजा आप लगा सकते हैं कि वहां के रेगिस्तानी इलाकों के हालात भीषण गर्मी में किस तरह भयावह होंगे। देश की सीमाओं की रक्षा करने में जुटी सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने बॉर्डर इलाकों को हराभरा रखने की मुहिम शुरू की है। बीएसएफ की यह मुहिम मानसून की दस्तक के साथ शुरू होगी। इस मुहिम के तहत अगले पांच सालों में 15 लाख पेड़ लगाए जाएंगे।
पीएम मोदी के विजन को कर रहे साकार
सीमा सुरक्षा बल के आईजी (ट्रेनिंग) राजा बाबू सिंह ने अमर उजाला को खास बातचीत में बताया कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों (CAPF) में बीएसएफ पहला सशस्त्र बल है, जो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन, ‘एक पेड़ मां के नाम’ को साकार कर रहा है। बीएसएफ ने इस अनूठे अभियान का नाम रखा है, “ग्रीनिंग द डेजर्ट- एक पेड़ मां के नाम”। इस अभियान के तहत हर साल तीन लाख, यानी पांच सालों में 15 लाख पेड़ लगाए जाएंगे। वह बताते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग का असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। राजस्थान भी इससे अछूता नहीं है। राजा बाबू के मुताबिक बीएसएफ भले दी देश की सीमाओं की सुरक्षा करता है, लेकिन उसकी अहम जिम्मेदारी पर्यावरण के प्रति भी है। पर्यावरण को ग्लोबल वार्मिंग के बुरे प्रभाव से बचाने के लिए हमें उन तरीकों की खोज करनी होगा, जो पर्यावरण के लिहाज से बेहद टिकाऊ हों, ताकि रेगिस्तान के प्रसार को आगे बढ़ने से रोका जा सके।
केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान करेगा मदद
भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी राजा बाबू सिंह कहते हैं कि तापमान दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है, ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं, नदियां खत्म हो रही हैं, पेड़-पौधे सूख रहे हैं। अगर हम सही समय पर सही कदम नहीं उठाते हैं तो भविष्य में हमें किस भयावह स्थिति का सामना करना पड़ सकता है, इसकी आप कल्पना ही कर सकते हैं। वह कहते हैं, पर्यावरण की रक्षा के लिए सही कदम उठाने का यह सही समय है। इसके लिए रेगिस्तानी इलाकों को हरा-भरा बनाने के लिए एक दूरदर्शी योजना शुरू की गई है। इस योजना का उद्देश्य रेगिस्तान के शुष्क इलाकों को हरियाली में बदलना और खोई हुई स्थानीय जैव विविधता को दोबारा वापस पाना है। इसके लिए बीएसएफ राजस्थान के वन विभाग और केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान (ICAR) के साथ मिल कर काम रही है।
पेड़ों की छाया से जवानों को भी मिलेगी राहत
आईजी (ट्रेनिंग) ने आगे बताया कि बीएसएफ के महानिदेशक ने इच्छा जताई है कि बीएसएफ, राजस्थान सरकार का वन विभाग और आईसीएआर साथ मिलकर “रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने” के वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ एक सकारात्मक पहल करें। यह परियोजना पांच साल के लिए होगी, जिसमें जनसेवकों, मंत्रियों से भी पौधारोपण अभियान का समर्थन करने, इसमें शामिल होने के लिए अनुरोध किया जाएगा। वह बताते हैं कि राजस्थान के सबसे गर्म इलाकों जैसे बाड़मेर, बीकानेर, जैसलमेर में हमारे जवान और अधिकारी प्रतिकूल और कठोर जलवायु परिस्थितियों में भी अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं, जहां पर्याप्त हरियाली भी नहीं है। ऐसे में अगर बीएसएफ की सीमा चौकियों, सीमावर्ती इलाकों और ओपी पॉइंट्स के आसपास वृक्षारोपण होगा, तो इनकी छाया से वहां तैनात जवानों को भी राहत मिलेगी।
पौधे जिंदा रहें, इसका रखेंगे खास ख्याल
आईजी (ट्रेनिंग) राजा बाबू सिंह ने बताया कि बीएसएफ ने इससे पहले भी अपने क्षेत्र से बाहर पौधारोपण अभियान चलाए हैं, लेकिन उनमें यह देखा गया है कि तकनीकी जानकारी और संस्थागत तंत्र के अभाव में पौधों की जीवित रहने की दर बेहद कम रही। वहीं, बॉर्डर आउट पोस्ट (बीओपी) में लगाए गए पौधों के मुकाबले उन्हें संरक्षित रखने और नियमित रूप से पानी देने की जरूरत है। क्योंकि बीओपी में हमारे जवान पौधों की उचित देखभाल करते हैं। उन्होंने बताया कि मेजबान/भागीदार के रूप में बीएसएफ राजस्थान सरकार, आईसीएआर और वन विभाग के साथ इस बात को सुनिश्चित करेगा कि पौधे जीवित रहें। उन्होंने बताया कि आईसीएआर का बीकानेर सेंटर इस बात की शोध कर रहा है कि रेगिस्तानी और मरुस्थलीय इलाकों में किस तरह के पौधों को आसानी से उगाया जा सकता है। इसके लिए उन्होंने नीम, खेजड़ी, रोहिडा, साल्वाडोरा और ऐकेसिया के पौधे सुझाए हैं, जो वहां के इलाके में अच्छे से पनप सकते हैं। उन्होंने बताया कि कश्मीर में अपनी तैनाती के दौरान उन्होंने 500 अखरोट के पौधे लगाए थे, जो आज बड़े वृक्ष बन चुके हैं। रेगिस्तान को हराभरा बनाने के लिए बड़ी संख्या में पौधों की जरूरत पड़ेगी, इसके लिए वन विभाग के अलावा एनजीओ ने भी सहयोग करने का वादा किया है।
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