जोधपुर में तैनात बीएसएफ के जवान शहीद अनिल कुमार का रविवार को उनके पैृतक गांव कंवारी में पूरे राजकीय व सैन्य सम्मान से अंतिम संस्कार किया गया। हजारों की संख्या में मौजूद ग्रामीणों ने नम आंखों से शहीद अनिल को अंतिम विदाई दी। शहीद का पार्थिव शरीर जोधपुर से उनके पैतृक गांव कंवारी में लाया गया।
जोधपुर से बीएसएफ की ओर से आए सुभाष चंद्र ने बताया कि अनिल कुमार ड्यूटी करने के बाद बाइक से अपने कमरे पर जा रहे थे कि अज्ञात वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी थी। इसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन उपचार के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। रविवार सुबह जब अनिल कुमार का पार्थिव शरीर उनके गांव में लाया गया तो हर किसी की आंख नम थी और जिसको भी सूचना मिली वह वहां पर दौड़ा चला आया। शहीद अनिल के भाई देवेंद्र ने बताया कि उनके भाई उनके लिए भगवान के बराबर थे। अनिल की माता कृष्णा देवी बार-बार अपने बेटे को पुकार रही थी और आंखों से अश्रुधारा भी बह रही थी। ऐसा ही हाल अनिल की पत्नी कविता देवी का था।

अंतिम यात्रा में सैकड़ों लोग शामिल हुए। बचपन से ही अनिल का कबड्डी सबसे पसंदीदा खेल था। पहले उनके पिता मांगेराम दुहन भी कबड्डी खेलते थे। जब भी वह मैदान में कबड्डी का मैच खेलने उतरते थे तो सामने वाली टीम के पसीने छूट जाते थे। जब भी कोई जवान शहीद होता है तो उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाता है।
बीएसएफ की तरफ से पहुंचे अधिकारियों ने श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद तिरंगे झंडे को सम्मान के साथ अनिल कुमार के स्वजनों में उनके बेटे अचल को सौंपा और सलामी दी। वर्ष 2001 में बीएसएफ में स्पोर्ट्स कोटे से ट्रायल देकर भर्ती हुए अनिल कुमार गांव के पहले ऐसे खिलाड़ी थे जिन्होंने खेल कोटे से सेना में जाने का अवसर मिला। बीएसएफ की तरफ से खेलते हुए उन्होंने अपनी प्रतिभा का बेहतरीन प्रदर्शन किया। 7 साल तक कोचिंग भी की।
नेशनल कबड्डी में कई बार बेस्ट रैडर का अवार्ड भी नहीं मिला। 1998 और 1999 में दो बार हरियाणा की टीम से नेशनल खेलते हुए अपनी टीम को बेहतरीन जीत दिलाई थी। इसी दौरान वह बेस्ट रैडर भी चुने गए थे।
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