केंद्र में नई सरकार के सामने यह एक बड़ा रहेगा कि नई पेंशन योजना (एनपीएस) को जारी रखा जाए या ओपीएस पर वापस लौटा जाए। करीब दो दशक से ट्रेड यूनियन, ओपीएस की मांग कर रही हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारों के 6 करोड़ से अधिक कर्मचारी, ओपीएस की मांग कर रहे हैं। इस संख्या में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी भी शामिल हैं।
लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में अभी तक नई सरकार यानी ‘मोदी 3.0’ का गठन नहीं हुआ है, लेकिन इससे पहले ही कर्मचारी संगठन मुखर हो गए हैं। केंद्रीय कर्मचारी संगठनों ने चेतावनी दी है कि नई सरकार ने बीस वर्ष से लंबित पड़ी ‘पुरानी पेंशन’ बहाली की मांग पूरी नहीं की, तो दोबारा से आंदोलन प्रारंभ होगा। पुरानी पेंशन बहाली के लिए गठित, नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) के वरिष्ठ पदाधिकारी, स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद (जेसीएम) के सदस्य और अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी. श्रीकुमार ने कहा, सरकारी कर्मचारी भी इस देश के नागरिक और मतदाता हैं। अपनी जायज मांगें मनवाने के लिए उनके पास विरोध प्रकट करने के कई तरीके हैं। आंदोलन के अलावा सरकारी कर्मचारियों के पास लोकतंत्र में वोट भी एक शक्तिशाली हथियार है। इस चुनाव में कर्मचारियों ने अपने वोट के जरिए असंतोष जाहिर कर दिया है। अब केंद्र की नई सरकार, पहले की भांति ओपीएस न देने पर अड़ी रही तो कर्मचारी संगठनों को अपनी ट्रेड यूनियन कार्रवाई/आंदोलन को वापस बहाल करना पड़ेगा।
श्रीकुमार ने कहा, उम्मीद है कि सत्ता संभालने जा रही सरकार जमीनी हकीकत को ध्यान में रखते हुए चुनावों में अपनी हार के कारणों का आत्ममंथन करेगी। चूंकि इस हार में पुरानी पेंशन योजना को बहाल न करना भी एक बड़ा निर्णायक फैक्टर रहा है, ऐसे में सरकार कर्मचारियों की ओपीएस सहित अन्य मांगों पर भी अनुकूल विचार करेगी। विभिन्न ट्रेड यूनियनों ने उनकी अधूरी मांगों के परिप्रेक्ष्य में चुनाव परिणाम का विश्लेषण किया है। मोदी सरकार की निगमीकरण और निजीकरण की नीति का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ है। इस निर्णय ने लोकसभा चुनाव के परिणामों को प्रभावित किया है। कर्मचारियों के अलावा दूसरे वर्गों ने भी निजीकरण की पॉलिसी का विरोध किया है। केंद्र में नई सरकार के सामने यह एक बड़ा रहेगा कि नई पेंशन योजना (एनपीएस) को जारी रखा जाए या ओपीएस पर वापस लौटा जाए। करीब दो दशक से ट्रेड यूनियन, ओपीएस की मांग कर रही हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारों के 6 करोड़ से अधिक कर्मचारी, ओपीएस की मांग कर रहे हैं। इस संख्या में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी भी शामिल हैं।
बतौर एआईडीईएफ महासचिव सी. श्रीकुमार के मुताबिक, अंशदायी पेंशन योजना उन सरकारी कर्मचारियों के लिए एक बड़ा झटका है, जो सेवानिवृत्त हो रहे हैं। वजह, एनपीएस में उन्हें जो पेंशन मिल रही है, वह राशि पुरानी पेंशन योजना के तहत मिलने वाली पेंशन के आसपास भी नहीं है। वे कर्मचारी हर महीने अपने वेतन का 10 फीसदी योगदान करते हैं। सरकारी कर्मचारियों के 20 वर्षों के आंदोलन के बावजूद सरकार पुरानी पेंशन योजना को बहाल नहीं करने पर आमादा है। कई विपक्ष शासित राज्यों ने पुरानी पेंशन योजना को बहाल कर दिया है। सत्तारूढ़ दल के कुछ नेताओं ने कहा कि एनपीएस, संसद चुनाव में कोई मुद्दा नहीं होगा। लोकसभा चुनाव में सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारों ने एनपीएस के खिलाफ अपना गुस्सा ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) के माध्यम से व्यक्त किया है, ये किसी से छिपा नहीं है।
मीडिया में आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लोकसभा चुनाव में किसानों की तरफ से भाजपा को बड़ा झटका लगा है। इसके परिणामस्वरूप पांच राज्यों में 38 सीटों का नुकसान हुआ है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा झारखंड में बड़े अंतर से हार गए। कई राज्यों में किसानों के विरोध के चलते भाजपा नेता अपना प्रचार नहीं कर पाए थे। सरकार ने अपने शासन के दूसरे कार्यकाल में विशेषकर किसानों, मजदूरों सहित सरकारी कर्मचारियों और बेरोजगार युवाओं की अनदेखी की है। एनपीएस और सरकार में रोजगार नहीं मिलने के कारण केंद्र सरकार के कर्मचारियों और बेरोजगार युवाओं, विशेषकर रेलवे और रक्षा जैसे विभिन्न सरकारी उद्योगों के ट्रेड अपरेंटिस में गुस्सा देखा गया। समूह ए अधिकारियों और उनके परिवार के सदस्यों सहित सरकारी कर्मचारी नई पेंशन योजना से बहुत नाराज हैं। एनपीएस ने पुरानी पेंशन योजना के तहत उनसे पेंशन का अधिकार छीन लिया है। अनिश्चित बुढ़ापे का सहारा छीन लिया है।
एनपीएस में उन्हें 2000 रुपये से लेकर रुपये 4000 प्रति माह पेंशन मिल रही है। केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए एआईडीईएफ और केंद्र एवं राज्य सरकारों के दूसरे कर्मचारी संगठनों ने गत वर्ष ‘जेएफआरओपीएस’ के बैनर तले दिल्ली के रामलीला मैदान में विशाल रैली की थी। इसमें पांच लाख से अधिक राज्य सरकार और केंद्र सरकार के कर्मचारियों एवं उनके परिवार के सदस्यों ने शिरकत की थी। जेएफआरओपीएस द्वारा अनिश्चितकालीन हड़ताल का निर्णय भी लिया गया था, जिसे बाद में संसद चुनावों के कारण स्थगित कर दिया गया। जहां तक एनपीएस का सवाल है, इसने राज्य सरकार और केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वोट तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई स्थानों पर डाक मतपत्रों के परिणामों से यह बात स्पष्ट हो गई है। नई सरकार के गठन के बाद कर्मचारी संगठन, एक बार फिर सरकार से संपर्क करेंगे और आग्रह करेंगे कि जब न्यायाधीशों, सशस्त्र बलों को एनपीएस से छूट दी गई है, विधानमंडल और संसद के सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों को बिना किसी योगदान के गारंटीशुदा पेंशन मिल रही है, तो इसका क्या औचित्य है।
सरकार अपने ही कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ देने से क्यों इनकार कर रही है। ग्रुप ए स्तर के अधिकारी जो 01.01.2004 के बाद एनपीएस में सेवा में शामिल हुए, वे भी सरकार के विभिन्न विभागों में संयुक्त सचिव और अतिरिक्त सचिव के स्तर पर हैं। पुरानी पेंशन योजना में वापस जाने के सरकार के नीतिगत निर्णय के संबंध में वे सरकार को किस हद तक प्रभावित कर पाएंगे। वे भी इससे समान रूप से प्रभावित हैं। आज कर्मचारी, केवल एनपीएस के कारण ही नहीं, बल्कि कई अन्य मुद्दों के कारण भी असंतुष्ट हैं। जैसे 18 महीने के डीए बकाया का भुगतान न करना। इस भुगतान को कोविड-19 महामारी के दौरान रोक दिया गया था। जून और दिसंबर के महीने के दौरान सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों को पेंशन और अन्य लाभों के उद्देश्य से काल्पनिक वेतन वृद्धि का लाभ नहीं मिलना, जेसीएम आईआर तंत्र का काम न करना, मूल वेतन/पेंशन के साथ 50 फीसदी डीए का विलय न होना, कर्मचारियों के पक्ष में कोर्ट का फैसला सुनाया गया, मगर उसे लागू नहीं करना, आदि। 8वें केंद्रीय वेतन आयोग की नियुक्ति, कम्यूटेड पेंशन को 15 साल के बजाय 12 साल बाद बहाल करना, हर जिले में सीजीएचएस वेलनेस सेंटर की स्थापना नहीं करना, सरकार इन मांगों की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही है।
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