धोरों की तपती बालू और 47 डिग्री तापमान वाली तपती दुपहरी में तो परछाई भी बेबस होकर साथ छोड़ने लगती है। तब बार्डर की तारबंदी पर गश्त करते दिखते हैं, तो केवल सीमा सुरक्षा बल के जवान। उनमें फर्ज निभाने का जज्बा ही है, जो ऐसे विषम हालात की परवाह किए बिना कदम आगे बढ़ाते रहते हैं।
प्रदेश से लगती 1037 किलोमीटर लम्बी अंतरराष्ट्रीय भारत-पाकिस्तान सीमा पर भीषण गर्मी का मौसम भी जवानों का हौसले को नहीं डगमगा पाता। धोरों की तपती बालू और 47 डिग्री तापमान वाली तपती दुपहरी में तो परछाई भी बेबस होकर साथ छोड़ने लगती है। तब बार्डर की तारबंदी पर गश्त करते दिखते हैं, तो केवल सीमा सुरक्षा बल के जवान। उनमें फर्ज निभाने का जज्बा ही है, जो ऐसे विषम हालात की परवाह किए बिना कदम आगे बढ़ाते रहते हैं।
पश्चिम सरहद पर थोड़े-थोड़े फासले पर बीएसएफ की सीमा चौकियां हैं। इनमें गर्मी से बचाव के लिए कोई खास बंदोबस्त नहीं है। बीओपी पर तो जमीन से दो सौ फीट की ऊंचाई पर मचान पर खड़े जवाने के लिए कूलर तक नहीं है। पत्रिका से जवानों ने कहा कि देश की सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी हम पर है। ऐसे में जो भी हालात रहें, वह अपने कर्तव्य पर अडिग हैं।
केवल जैसलमेर में कुछ ओपी में कूलर
बीएसएफ सूत्रों के मुताबिक, पश्चिम सरहद पर जैसलमेर सेक्टर में कुछ ओपी पर जरूर कूलर की व्यवस्था की गई है। शेष बॉर्डर पर जवान अपने मुुंह को सूती कपड़े से ढक कर लू का मुकाबला करते हैं। पानी की बोतल और नीबू जरूर साथ रखते हैं। ताकि लू-तापघात की चपेट में आने की आशंका होने पर तुरंत उसका सेवन कर लें।
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