लोकसभा चुनाव के दौरान, अपनी ड्यूटी को बेहतर तरीके से अंजाम देने वाले सशस्त्र सीमा बल ‘एसएसबी’ के एक अधिकारी को बदइंतजामी की शिकायत करना भारी पड़ गया। एसएसबी के सीमांत मुख्यालय लखनऊ के डीआईजी (ऑप्स) द्वारा तीन मई को जारी आदेश में डिप्टी कमांडेंट रतीश कुमार पांडे को चुनावी ड्यूटी से हटा दिया गया है। एसएसबी सूत्रों के मुताबिक, इतना ही नहीं, डिप्टी कमांडेंट को ‘कारण बताओ नोटिस’ भी जारी किया गया है। इस कार्रवाई को लेकर केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीएपीएफ’ के कैडर अफसरों में रोष व्याप्त है। सीआरपीएफ के पूर्व कैडर अफसर सर्वेश त्रिपाठी ने कहा, ये एकतरफा कार्रवाई है। इससे सीएपीएफ अधिकारियों का मनोबल गिरता है।
मतदान ड्यूटी के लिए आगरा पहुंची थी वाहिनी
सशस्त्र सीमा बल ‘एसएसबी’ की तदर्थ वाहिनी 722 के कमांड अधिकारी ‘उप कमांडेंट’ रतीश कुमार पांडे द्वारा बीते दिनों बल के आईजी महेश कुमार, सीमांत मुख्यालय लखनऊ को शिकायत भेजी गई थी। इस शिकायत की प्रति, निर्वाचन आयोग, नई दिल्ली, सीआरपीएफ मध्य सेक्टर लखनऊ के आईजी, पुलिस आयुक्त आगरा और जिला अधिकारी आगरा को भी प्रेषित की गई। इसमें डिप्टी कमांडेंट ने चुनावी ड्यूटी के दौरान स्थानीय पुलिस प्रशासन की बदइंतजामी की शिकायत की थी। उन्होंने अपनी शिकायत में कहा था, दूसरे चरण का सफल मतदान कराने के बाद एसएसबी की कंपनी, तीसरे चरण की मतदान ड्यूटी के लिए मथुरा से आगरा पहुंची थी। आगरा में ऐसी हालत हुई कि न तो एसएसबी के डिप्टी कमांडेंट को रहने की उचित जगह मिली और न ही दूसरे कार्मिकों को। वे कई घंटों तक इधर-उधर भटकते रहे। उप कमांडेंट ने इस मामले में जब अपर पुलिस अधीक्षक राजीव सिंह से मदद का आग्रह किया, तो उन्होंने भी दो टूक शब्दों में जवाब दे दिया। उन्होंने कहा, हम इससे बेहतर नहीं कर सकते। आपके कार्मिक कहां रहेंगे, ये आप देख लीजिये। इतना कुछ होने के बाद एसएसबी अधिकारी ने अपने आईजी, आगरा के पुलिस आयुक्त और निर्वाचन आयोग सहित कई अफसरों को मामले की शिकायत दे दी।
मूलभूत सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ा
शिकायत में कहा गया है कि चुनावी ड्यूटी के दौरान, केंद्रीय बल के जवानों और अधिकारियों को आवास एवं मूलभूत सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ा है। एसएसबी के जवान, दूसरे चरण की मतदान प्रक्रिया पूरी कराने के बाद 27 अप्रैल को मथुरा से आगरा पहुंचे थे। इन जवानों को अब तीसरे चरण का मतदान संपन्न कराना है। शिकायत के मुताबिक, जब एसएसबी जवानों की कंपनी आगरा पहुंची, तो वहां पर राज्य पुलिस के किसी भी व्यक्ति ने कंपनी की सुध नहीं ली। न तो किसी ने फोन किया और न ही किसी ने यह जानकारी दी कि जवानों और अफसरों को कहां पर ठहरना है। उप कमांडेंट अपने जवानों के साथ इधर उधर भटकते रहे। इस बाबत आगरा पुलिस के निर्वाचन नोडल अधिकारी, राजीव सिंह, अपर पुलिस अधीक्षक को फोन पर उक्त समस्या की जानकारी दी गई। उन्होंने इंतजार करने के लिए कहा। कुछ समय बाद आगरा पुलिस के आरक्षी ने फोन पर उप कमांडेंट को एक होटल में जाने के लिए कहा। उप कमांडेंट, होटल में चला गया। होटल में जाकर देखा तो वहां की दयनीय हालत थी। बल के दूसरे कार्मिकों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई।
मैं ऐसा कोई प्रमाण पत्र नहीं दूंगा
इसके बाद उप कमांडेंट ने दोबारा से आगरा पुलिस के अधिकारी राजीव सिंह से बात की। अपर पुलिस अधीक्षक ने जवाब दिया, हम इससे बेहतर नहीं दे सकते। आपके कार्मिक कहां रहेंगे, ये आप देख लीजिये। उप कमांडेंट ने कहा, मैं अपने कार्यालय को आगरा से दूर स्थापित नहीं कर सकता। इसके बावजूद अपर पुलिस अधीक्षक का रवैया नहीं बदला। उप कमांडेंट ने राजीव सिंह से आग्रह किया कि मैं अपने खर्च पर होटल ले लेता हूं, आप ‘नो एकमोडेशन सर्टिफिकेट’ प्रदान कर दें। अपर पुलिस अधीक्षक ने इसके जवाब में कहा, मैं ऐसा कोई प्रमाण पत्र नहीं दूंगा। उन्होंने उप कमांडेंट को यह रिपोर्ट करने की धमकी दी कि उन्होंने एकमोडेशन लेने से मना किया है। जब उप कमांडेंट ने अपर पुलिस अधीक्षक, राजीव सिंह से पर्यवेक्षक का नंबर मांगा गया, तो उन्होंने उपलब्ध नहीं कराया। इस घटनाक्रम के बाद शिकायतकर्ता उप कमांडेंट ने फतेहपुर सीकरी में स्वयं के खर्च पर होटल का कमरा किराए पर लिया। अपने कर्मियों के रहने का इंतजाम भी किया। उप कमांडेंट ने कहा, केंद्रीय पुलिस बल में रहते हुए हमें अकसर, अपने घर परिवार से दूर रहना पड़ता है। कई अवसरों पर स्थानीय पुलिस का सहयोग प्राप्त नहीं होता। ऐसे में हमारी सेवा चुनौतीपूर्ण हो जाती है। इस मामले में उचित हस्तक्षेप किया जाए, ताकि हमारे आत्मसम्मान तथा मनोबल को संबल प्राप्त हो।
कैडर अफसरों का मनोबल टूटता है
सीआरपीएफ के पूर्व कैडर अफसर, सर्वेश त्रिपाठी, जो सीएपीएफ में ओपीएस सहित विभिन्न मुद्दों पर आवाज उठाते रहते हैं, ने कहा, इस घटना से सभी केंद्रीय बलों के कैडर अफसरों में रोष है। ये पहली घटना नहीं है, जब ऐसा हुआ है। इससे पहले भी सीएपीएफ अधिकारियों के साथ लोकल पुलिस प्रशासन द्वारा अच्छा बर्ताव न करने के मामले सामने आए हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय का आदेश है कि चुनावी ड्यूटी पर फोर्स को कम से कम बुनियादी सुविधाएं तो अवश्य प्रदान की जा जाएं। बाकी तो इन बलों में पोस्टिंग ऐसी होती है कि वहां सभी सुविधाएं मिलना संभव नहीं है।
ये केंद्रीय बल, आतंकियों, नक्सलियों और उत्तर पूर्व के उग्रवादी संगठनों के साथ लोहा लेते हैं। कई दिनों तक घने जंगलों में ऑपरेशनल ड्यूटी पर रहना पड़ता है। एंबुश जैसी घातक स्थितियां झेलनी पड़ती हैं। ऐसे में सीएपीएफ जवान और अधिकारी खुद ही बुनियादी सुविधाओं पर नहीं जाते। चुनावी ड्यूटी में जवान भी साथ होते हैं। उन्हें लोकल पुलिस के सहयोग से अपनी ड्यूटी को अंजाम देना पड़ता है। यहां उनका पर्सनल मैनेजमेंट नहीं होता। जवानों को कम से कम बुनियादी सुविधा तो मिले। इस मामले में एसएसबी अधिकारी को चुनावी ड्यूटी से हटाना, बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण कार्रवाई है। सर्वेश त्रिपाठी ने कहा, चुनाव आयोग को इस मामले में संज्ञान लेना चाहिए। इस तरह की एकतरफा कार्रवाई से संवेदनशील ड्यूटी पर तैनात अधिकारियों और जवानों का मनोबल टूटता है। निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया पर भी असर पड़ता है।
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Yahi to baat hai IPS kabhi capf officer ko puchte tak nahi.our na koi police wala capf ki ijjat karta hai.