संसद भवन और अयोध्या स्थित राम मंदिर को दहशतगर्दों से महफूज रखने वाले सीआरपीएफ जांबाजों को ड्यूटी से क्यों हटाया जा रहा है। देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ में यह सवाल चर्चा का विषय बना हुआ है। संसद भवन की सुरक्षा के लिए सीआरपीएफ में ‘पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप’ (पीडीजी) गठित किया गया था। अब कहा जा रहा है कि संसद भवन की सुरक्षा से पीडीजी को हटाकर, सीआईएसएफ को वहां की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी जा रही है। यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। दो माह के भीतर यह प्रक्रिया पूरी होने की उम्मीद है। पीडीजी को सीआरपीएफ की वीआईपी सिक्योरिटी विंग में शिफ्ट किया जाएगा। इसी तरह अयोध्या स्थित राम मंदिर की सुरक्षा में तैनात सीआरपीएफ विंग को भी वापस बुलाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। मंदिर की सुरक्षा की कमान, उत्तर प्रदेश विशेष सुरक्षा बल (यूपीएसएसएफ) को सौंप दी जाएगी।
दो बटालियनों में विभाजित होगा पीडीजी दस्ता
सूत्रों के मुताबिक, संसद भवन की पुख्ता सुरक्षा के लिए ‘पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप’ (पीडीजी) का गठन किया गया था। इस विशेष बल में लगभग 1600 जवानों को रखा गया। इसके अलावा एक डीआईजी, एक कमांडेंट, एक टूआईसी, छह डिप्टी कमांडेंट और 14 सहायक कमांडेंट को पीडीजी का हिस्सा बनाया गया। पीडीजी के जवानों को विशेष प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है। 13 दिसंबर 2001 को सीआरपीएफ के बहादुर जवानों ने लोकतंत्र के मंदिर ‘संसद’ को पाकिस्तानी आतंकियों के हमले से बचाया था। गत वर्ष 13 दिसंबर को ही दो युवाओं ने संसद भवन के भीतर घुसकर धुआं फैला दिया था। हालांकि उसमें पीडीजी की ड्यूटी में कोई चूक नहीं थी। संसद भवन के प्रवेश मार्गों पर दिल्ली पुलिस और संसद सुरक्षा सेवा (पीएसएस) का स्टाफ तैनात रहता है। इसके बाद पार्लियामेंट की सुरक्षा व्यवस्था की उच्चस्तरीय समीक्षा की गई। उसमें यह तय हुआ कि सीआईएसएफ को संसद भवन की सुरक्षा में लगाया जाए। अब पीडीजी दस्ते को दो बटालियनों में विभाजित कर उसे सीआरपीएफ की वीआईपी सुरक्षा में शामिल किया जाएगा।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के स्तर पर होता है निर्णय
इस मामले में सीआरपीएफ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है, संसद भवन हो या राम मंदिर, यह बल तय सुरक्षा मानकों पर सदैव खरा उतरा है। हालांकि यह निर्णय केंद्रीय गृह मंत्रालय के स्तर पर होता है। 13 दिसंबर 2023 की घटना के बाद उच्च स्तरीय बैठक में कई अहम निर्णय लिए गए थे। सीआरपीएफ डीजी अनीश दयाल सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी भी गठित की गई थी। इन सबके बाद ही यह निर्णय लिया गया कि संसद भवन की सुरक्षा की जिम्मेदारी सीआईएसएफ को सौंप दी जाए। पीडीजी, कोई सामान्य बल नहीं था। इसे सुरक्षा के कड़े एवं उच्च मानकों के आधार पर प्रशिक्षित किया गया था। अब लगभग 1600 जवानों और अफसरों को यहां से हटाया जा रहा है। भले ही ये पॉलिसी मैटर हो, लेकिन वर्षों से संसद भवन की सुरक्षा कर रहे पीडीजी को हटाने का औचित्य नजर नहीं आता। आतंकियों और नक्सलियों को खात्मा करने और सुरक्षा के अन्य मोर्चों पर अपना दमखम दिखाने वाले बल के अधिकारी एवं जवान, पीडीजी को हटाने के निर्णय से खुश नहीं हैं।