देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ में जवानों द्वारा आत्महत्या करने के मामलों में कमी लाने के लिए बल मुख्यालय द्वारा कई तरह के कदम उठाए जा रहे हैं। बल के अधिकारियों को लगता है कि अधिकांश जवान अपनी निजी समस्या के चलते आत्महत्या करते हैं। इसी वजह से अब सीआरपीएफ जवानों पर कई तरीके से नजर रखी जाएगी। यहां तक कि जवानों के ‘क्रेडिट इनफॉर्मेशन ब्यूरो इंडिया लिमिटेड’ (सिबिल) स्कोर का पता लगाया जाएगा। हर छह माह में इसकी रिपोर्ट तैयार होगी। यह डाटा एसबीआई से मांगा जाएगा। किसी भी जवान के छुट्टी, कोर्स या विशेष ड्यूटी पर जाने से पहले संबंधित कमांडेंट और कंपनी कमांडर, उसका वह स्कोर जांचने का काम करेंगे। यह भी सुनिश्चित होगा कि जवान, लंबी यात्रा और ड्यूटी के दौरान मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें। कितने जवान ऑनलाइन गेमिंग, क्रिप्टो ट्रेडिंग, इक्विटी ट्रेडिंग, बैंक के अलावा किसी दूसरी जगह से लोन लेना और बैंक से पर्सनल लोन, आदि में शामिल हैं, इस बाबत भी एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार होगी।
हर माह होगी जवानों की मॉनिटरिंग
सूत्रों के मुताबिक, हर छह माह में जवानों के क्रेडिट इनफॉर्मेशन ब्यूरो इंडिया लिमिटेड (सिबिल) स्कोर का पता लगाया जाएगा। सिबिल स्कोर को क्रेडिट स्कोर भी कहा जाता है। सिबिल स्कोर देखकर ही बैंक ये तय करते हैं कि व्यक्ति को लोन दिया जाना चाहिए या नहीं। यह स्कोर सीआरपीएफ की यूनिट या इकाई के हेड की प्रार्थना पर एसबीआई से मांगा जाएगा। कम सिबिल स्कोर वाले जवानों की पहचान की जाएगी। इसके बाद हर माह जवान की मॉनिटरिंग होगी। जरूरत पड़ने पर उसकी काउंसलिंग भी की जाएगी। किसी भी जवान के छुट्टी, कोर्स या विशेष ड्यूटी पर जाने से पहले कमांडेंट और कंपनी कमांडर, उसका वह स्कोर जांचने का काम करेंगे। वित्तीय स्थिति को लेकर जवानों के साथ नियमित संवाद करने की बात कही गई है। लाइन एनसीओ यह चेक करेगा कि ड्यूटी से लौटने के बाद अपने रेस्ट टाइम में कोई जवान मोबाइल गेम में तो व्यस्त नहीं है। सीआरपीएफ की कंपनियों और प्लाटून स्तर पर रोजाना, जवानों के लिए इंडोर व आउटडोर खेल गतिविधियां आयोजित की जाएं।
क्रिप्टो ट्रेडिंग व इक्विटी ट्रेडिंग पर भी नजर
यह भी देखा जाए कि जवान, लंबी यात्रा और ड्यूटी के दौरान मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें। बल कर्मियों को ऑनलाइन गेमिंग/बैटिंग के दुष्परिणामों के बारे में अवगत कराया जाए। इसके लिए जवानों की काउंसलिंग की जाए। कितने जवान ऑनलाइन गेमिंग आदि में शामिल हैं, ये पता किया जाएगा। क्रिप्टो ट्रेडिंग, इक्विटी ट्रेडिंग, बैंक के अलावा किसी दूसरी जगह से लोन लेना और बैंक से पर्सनल लोन, इन सभी बातों को लेकर जवानों को जागरूक किया जाए। सीआरपीएफ अधिकारियों से इस बाबत सुझाव मांगे गए हैं।
मनोरोग विशेषज्ञ द्वारा परामर्श दिलाने की बात
‘सीआरपीएफ’ में गत वर्ष सितंबर माह के दौरान मात्र 23 दिन के भीतर दो इंस्पेक्टर और एक एसआई सहित 10 जवानों द्वारा आत्महत्या की गई थी। इसके बाद फोर्स हेडक्वार्टर ने कई कदम उठाए थे। मुख्यालय द्वारा आत्महत्या के विभिन्न मामलों का अध्ययन करने के बाद कई तरह के निर्देश जारी किए गए हैं। जैसे बल की सभी यूनिटों में उन कर्मियों की पहचान की जाएगी, जो इस तरह का कदम उठा सकते हैं। उन्हें मनोरोग विशेषज्ञ द्वारा परामर्श दिलाया जाएगा। जब तक वह कर्मी पूरी तरह से तनाव मुक्त न हो जाए, बल की विशेष निगरानी में रहेगा। ऐसे कर्मियों को हथियार की पहुंच से दूर रखा जाएगा। सीआरपीएफ में पिछले पांच वर्ष के दौरान लगभग 250 जवान आत्महत्या कर चुके हैं।
सीएपीएफ में 654 से अधिक जवानों ने की आत्महत्या
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ, असम राइफल्स और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड में जवानों व अधिकारियों द्वारा आत्महत्या करने के मामले कम नहीं हो पा रहे हैं। गत पांच वर्ष में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 654 से अधिक जवानों ने आत्महत्या कर ली है। आत्महत्या करने वालों में CRPF के 250, बीएसएफ के 174, सीआईएसएफ के 89, एसएसबी के 64, आईटीबीपी के 51, असम राइफल के 43 और एनएसजी के 3 जवान शामिल हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय की संसदीय समिति ने अपनी 242वीं रिपोर्ट में कहा था कि आत्महत्या के केस, बल की वर्किंग कंडीशन पर असर डालते हैं। सेवा नियमों में सुधार की गुंजाइश है। जवानों को प्रोत्साहन दें। रोटेशन पॉलिसी के तहत पोस्टिंग दी जाए। लंबे समय तक कठोर तैनाती न दें। ट्रांसफर पॉलिसी ऐसी बनाई जाए कि जवानों को अपनी पसंद का ड्यूटी स्थल मिल जाए। अगर ऐसे उपाय किए जाते हैं, तो नौकरी छोड़कर जाने वालों और आत्महत्या के केसों में गिरावट आ सकती है।
तनावग्रस्त कार्मिकों की पहचान
बल मुख्यालय द्वारा आत्महत्या के मामलों के पीछे की वजह जानने के लिए विभिन्न केसों का अध्ययन कराया गया था। बल मुख्यालय की रिपोर्ट में सामने आया है कि अधिकांश केसों में कार्मिक, पारिवारिक कलह, विवाहोत्तर संबंध, प्यार में नाकाम होने और कर्ज की दलदल में फंसने की वजह से मानसिक तनाव से ग्रस्त हो जाते हैं। ऐसे में कार्मिक अंतत: आत्महत्या जैसा घोर घृणित कदम उठा लेते हैं। हालांकि बल महानिदेशालय द्वारा पूर्व में भी समय-समय पर ऐसे निर्देश जारी किए जाते रहे हैं। बल की तरफ से कहा गया है कि सभी स्तरों पर ऐसे तनाव ग्रस्त कार्मिकों की पहचान की जाए। इन कार्मिकों को मनोरोग विशेषज्ञ द्वारा परामर्श दिलाया जाए। जब तक वह कर्मी, तनाव मुक्त न हो जाए, उन्हें विशेष निगरानी में रखें। मनोवैज्ञानिक सलाह के लिए टेलीफोन नंबर भी जारी किया गया है। भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय द्वारा जारी मानसिक स्वास्थ्य एवं पुनर्वास के लिए टोल फ्री नंबर दिया गया है। सीमा सुरक्षा बल एवं एम्स के एमओयू द्वारा मुफ्त परामर्श के लिए भी कुछ फोन नंबर जारी किए गए हैं।
क्या इन कारणों की तरफ गौर करेगा बल?
बल के जवानों का कहना है कि आत्महत्या का कारण, केवल वित्तीय ही नहीं होता। उसके पीछे अनेक दूसरी वजह भी होती हैं। उनकी तरफ बल मुख्यालय ध्यान नहीं देता। कन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स मार्टियर्स वेलफेयर एसोसिएशन’ का कहना है, इन जवानों को घर की परेशानी नहीं है। सरकार इस मामले में झूठ बोल रही है। इन्हें ड्यूटी पर क्या परेशानी है, इस बारे में सरकार कोई बात नहीं करती। जवानों को पुरानी पेंशन से वंचित रखा जा रहा है। समय पर प्रमोशन या रैंक न मिलना भी जवानों को तनाव देता है। विभिन्न जगहों पर राशन में भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं। सीएपीएफ में कई जगहों पर वर्कलोड ज्यादा है। एक कंपनी में जवानों की तय संख्या कभी भी पूरी नहीं रहती। मुश्किल से साठ सत्तर जवान ही ड्यूटी पर रहते हैं। ऐसे में उनके ड्यूटी के घंटे बढ़ जाते हैं। जवान ठीक से सो नहीं पाते हैं। वे अपनी समस्या किसी के सामने रखते हैं, तो वहां ठीक तरह से सुनवाई नहीं हो पाती।
जवानों का उत्साह बढ़ाने की तरफ ध्यान नहीं
एसोसिएशन के मुताबिक, कुछ स्थानों पर बैरक एवं दूसरी सुविधाओं की कमी नजर आती है। कई दफा सीनियर की डांट फटकार भी जवान को आत्महत्या तक ले जाती है। बैंक खाते की जानकारी, फेसबुक, व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया साइट्स का एक्सेस कंपनी कमांडर के पास होना चाहिए, क्या इससे आत्महत्या के केस खत्म हो जाएंगे। कभी जवानों की बैरक देखनी चाहिए। जवानों का वॉशरूम देखें। ओवर डिप्लॉयमेंट की कोई बात नहीं करता। लांस नायक, नायक जैसे रैंक को हटाने से उनमें जवानों में हीन भावना पनप रही है। बीस साल तक उन्हें एक ही रैंक में काम करना पड़ता है। जवानों का उत्साह बढ़ाने की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। उन्हें कितनी छुट्टी मिल रही हैं, इसकी बात नहीं होती है। पीस पोस्टिंग में भी आधे से ज्यादा समय, बाहर की ड्यूटी में ही निकल जाता है। जवानों की निजी जिंदगी में घुसना, कहां तक सही है।