CRPF: एक ही अर्धसैनिक बल, लेकिन SI (सिविल) 11 वर्ष में बने सहायक कमांडेंट, तो एसआई (GD) को लग रहे 20 साल

देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल, सीआरपीएफ में पिछले सप्ताह एक आदेश जारी हुआ है। उसमें कहा गया है कि बल के करीब दो दर्जन इंस्पेक्टर ओवरसियर (सिविल) को सहायक कमांडेंट (इंजीनियर) बना दिया गया है। खास बात है कि सहायक कमांडेंट (इंजीनियर) का ओहदा पाने वाले ये अधिकारी 2013 में बतौर एसआई (सिविल) भर्ती हुए थे। इस पद के लिए सामान्य तौर पर डिप्लोमा होल्डर व्यक्ति ही अप्लाई करते हैं। अब महज 11 वर्ष में वे कर्मचारी, इंस्पेक्टर ओवरसियर (सिविल) के पद से गुजरते हुए सहायक कमांडेंट (इंजीनियर) की पदोन्नति पा गए हैं। यानी वे ‘ग्रुप सी’ से ‘ग्रुप ए’ में पहुंच गए हैं। दूसरी तरफ आतंकियों/नक्सलियों से भिड़ने वाले, अशांत इलाकों में कानून एवं व्यवस्था स्थापित करने की जिम्मेदारी संभालने, निष्पक्ष चुनाव और प्राकृतिक आपदा के दौरान लोगों की मदद करने वाले एसआई ‘जनरल ड्यूटी’ को सहायक कमांडेंट बनने में करीब 20 साल लग रहे हैं। अगर इंस्पेक्टर से सहायक कमांडेंट तक पहुंचने का सफर देखें, तो वह करीब 15 साल का रहता है।

गत सप्ताह 23 फरवरी को सीआरपीएफ महानिदेशक द्वारा 25 इंस्पेक्टर ओवरसियर (सिविल) को सहायक कमांडेंट (इंजीनियर) बनाए जाने के आदेश जारी हुए हैं। पदोन्नति की सूची में इंस्पेक्टर जनार्धन रेड्डी, रवि कांत, गोविंद सिंह, कृष्ण मोहन, अखिलेश कुमार, रंजन कुमार, शिभु आर, गोपालजी, रोनी पॉल, अरविंद कुमार शर्मा, अरिंदम पाल, अजय कुमार, देवेंद्र सिंह, रजनीश कुमार पाठक, अमित भार्गव, उमेश कुमार, परमवीर सिंह, प्रवीण कुमार गौंड, अभिनाश कुमार, अभय आनंद, किंगसुक सिंह, अय्यपन जी, अमरजीत सिंह, हिंमाशु नेगी और अवधेश कुमार पांडे शामिल हैं। इनमें से 24 कर्मी, 2013 में बतौर एसआई (सिविल) भर्ती हुए थे। अब इन्हें सहायक कमांडेंट (इंजीनियर) के लिए पे मेट्रिक्स लेवल-10 (56,100-177500) मिलेगा।

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सीआरपीएफ के सूत्रों ने बताया, एसआई ‘जनरल ड्यूटी’ को बेहद मुश्किल परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। इंस्पेक्टर बनने के बाद ये कर्मी, कंपनी कमांड भी करते हैं। सीआरपीएफ में अनेक इंस्पेक्टर ‘जनरल ड्यूटी’ ऐसे हैं, जिन्हें इस पद पर काम करते हुए 14 साल या उससे अधिक समय हो गए हैं। वे अभी तक सहायक कमांडेंट के पद से कोसों दूर हैं। मौजूदा परिस्थितियों के मद्देनजर, उन्हें अभी सहायक कमांडेंट के पद तक पहुंचने में चार-पांच वर्ष और भी लग सकते हैं। साल 2004 में एसआई ‘जनरल ड्यूटी’ वालों को अब सहायक कमांडेंट बनने का मौका मिला है। 2005 में भर्ती हुए कुछ एसआई भी अब सहायक कमांडेंट बन चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक, अगर अब कोई व्यक्ति बल में एसआई ‘जनरल ड्यूटी’ के पद पर भर्ती होता है, तो उसके सहायक कमांडेंट के पद तक पहुंचने के आसार बहुत कम हैं।

सूत्रों ने बताया, आज कोई एसआई ‘जनरल ड्यूटी’, इंस्पेक्टर बनता है, तो उसके ‘सहायक कमांडेंट’ बनने की संभावनाएं नहीं के बराबर हैं। वजह, सीआरपीएफ में लगभग 6000 इंस्पेक्टर हैं। हर साल मुश्किल से तीस-चालीस वैकेंसी आती हैं। इस संख्या से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये इंस्पेक्टर, सहायक कमांडेंट के पद पर कब पहुंचेंगे। बल में ज्वाइन होने वाला कोई भी व्यक्ति, 30-35 वर्ष ही जॉब कर पाता है। ऐसे में 6000 इंस्पेक्टर और हर वर्ष तीन दर्जन पदोन्नति, अंदाजा लगा लें कि इन्हें सहायक कमांडेंट बनने में कितना वक्त लगेगा।

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एसआई ‘जनरल ड्यूटी’ ग्रेजुएट होता है। दूसरी तरफ एसआई (सिविल) के पद की योग्यता डिप्लोमा होल्डर रखी गई है। महज 11 वर्ष में एसआई (सिविल) के पद पर भर्ती हुआ व्यक्ति, सहायक कमांडेंट (इंजीनियर) बन जाता है। कोरोनाकाल के दौरान इंस्पेक्टरों की पदोन्नति के लिए डीपीसी तक नहीं बनी थी। अन्य सीएपीएफ की तरह सीआरपीएफ में पहले सूबेदार मेजर का पद रहता था। इस पर वरिष्ठ इंस्पेक्टर की नियुक्ति होती थी। अब किसी को भी सूबेदार मेजर का पद नहीं दिया जा रहा है। लगभग एक दशक से यह प्रक्रिया बंद है। सूबेदार मेजर के कंधे पर अशोक स्तंभ लगता था, इसलिए वरिष्ठ इंस्पेक्टर का उत्साह बना रहता था।

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